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इस तल्ख़ दुनियाँ में भी कोई तो अपना निकला

 यह जानकर आँखों से अश्क़ों का दरिया निकला । मख़सूस मेरा दुश्मन मेरा ही लहजा निकला । रखता है चाहत दिल ओ जां से भी बढकर मुझसे , इस तल्ख़ दुनियाँ में भी कोई तो अपना निकला । मासूमियत है उसके भावों में बादल जैसी , बस देख लेने भर से बारिश में भीगा निकला । आँखों से मेरी यह आँसू कब हैं थमने वाले , बैलोस चाहत से कोई चाहने वाला निकला । इक तू ही है पाखी जो मेरी रुह में बसना चाहे , वरना अभी तक सब का मतलब से नाता निकला ।

तो फिर ये दूरियां क्यों है?

उफ़्फ़!!तुम्हारे यह अक्षर! सुंदर हैं तुम्हारी ही तरह तुम्हारे ही भावों में लिपट कर पहुंच जाते है मेरे अंतर्मन में और उठा देते हैं कई तूफान देह और रूह के बीच की गहरी अँधेरी घाटियों में। तुम्हारी मुस्कुराती हुई तस्वीर मेरे ख़यालों की अंतहीन दूरियों में सहसा खो जाती हैं पर कभी ओझल नहीं होती तुम हर वक्त मेरी बाहों में सिमटी हुई रहती हो और मैं तुम्हारे होठ चूम लेता हूँ आंख खुलने से पहले। तुम्हारी खनकती हुई हँसी और मधुर प्यारी सी बातें मदहोश मुझे कर देती हैं तुम भी तो इंतजार करती हो मेरे ईशारों का और ईशारों में ही कह देती हो सब कुछ तुम जानती तो हो यह सब तो फिर ये दूरियां क्यों है? प्रकाश पाखी

तो ये दीवाली फिर से इक बार मीठी और खास हो जाए

1) कुछ बिसरे दिन, कुछ लोग पुराने गर फिर से साथ हो जाए तो ये दीवाली फिर से इक बार मीठी और खास हो जाए दिवाली की छुट्टियों के होमवर्क से सजे होते थे नई कॉपियों के पन्ने पहले उसके बाद उसमें होता था एक अधूरा होमवर्क और फिर पूरी खाली नोटबुक हरबार की तरह मगर जिसमें छुपी होती थी ढेरों खुशियां, खुद गुम होकर खेल को रोक देने वाली एक पीली टेनिस बॉल छुप्पम छुपाई में नीम की ओट में छुपे लड़के का झांकता चेहरा मेहमानों से मिलने वाला एक रूपया उससे खरीदी हुई चंद टॉफियां और गले में उतरती हुई उनकी मिठास शाम को थक तो जाते थे हमारे नन्हे जिस्म मगर फिर भी रूह को छू लेती थीं खुशियां,अपनो और अपनेपन के बीच सुकूँ से भरी हुई थी छोटी सी इक हमारी जन्नत आज कहीं फिर से हमें बस वही रूहानी अहसास हो जाए तो ये दीवाली एक बार फिर से मीठी और खास हो जाएं 2) आंगनों को लीपती कोरती दीवारों को बुआ चाचियों की खिलखिलाहटें नवोढ़ाओ की फुसफुसाहटें बुजुर्गों के कदमों की आहटें मां की रसोई में घूघरी की मीठी खुशबू गीली माटी को खूंदते और उस आंगन को फिर नया बनाते हुए हमारे नन्हे नन्हे पांव इतन

देह देखते हो

रिश्तों के जतन है जिंदगी सुखन है है प्रेम भीतर और अपनापन है जलन भी है यहां, और एक चुभन है हाँ,मेरे पास भी मेरा अपना मन है तुम न प्यार देखते न ही नेह देखते हो तुम तो सिर्फ मेरी देह देखते हो। थकता हुआ जरा सा विश्राम चाहता है मिल जाए गर जरा आराम चाहता है खुद के साथ गुज़ार लूं मेरा ही अकेलापन है ताउम्र मेरे साथ होगा मेरा अपना बदन है। मेरी भी अपनी इच्छा है, इक मेरी भी निजता है पर कहाँ तुम सब ये देखते हो तुम तो सिर्फ मेरी देह देखते हो। इंसान ही हूँ मैं सिर्फ तन नहीं हूं ताले न लगा मुझ पर मैं धन नहीं हूं विवश गर हूं मैं तो उसमें तेरा दोष है मुझे जो बांधती है सिर्फ तेरी सोच है जो मैं नहीं हूं तुम उसे देखते हो तुम तो सिर्फ़ मेरी देह देखते हो। तुम्हें है जो देखना तुम वही देखते हो मेरे भीतर आग भी तुम नहीं देखते हो प्रचंड पवन मन की न तुम कहीं देखते हो न आंखो से बरसता तुम मेह देखते हो तुम तो सिर्फ मेरी देह देखते हो। प्रकाश सिंह

फैमिली

चुप चुप सी होली जाती अब ख़ामोशी से राखी आती दीवाली को दिल बेगाने कैसी सबकी है लाचारी बचपन बीता, सबकुछ रीता बंद बंद सी बोलचाल है प्रेम प्यार भी खो गए सारे अब छुप गयी है खुशियाँ सारी कैसे किसको दिखलाना है कैसे किसको नीचे लाना बचा तो केवल अहम वहम है और तानों की मारामारी नफ़रत होती अपनों से अब बेगानों से तगड़ी यारी लहू के रिश्ते,लगें पराये निभजाती है दुनियादारी मतलब से सब मतलब रखते मतलब की है रिश्तेदारी सबसे पहले बदली भौजी फिर भाइयों की आई बारी छुटकी मुन्ना हुए बड़े अब ताया भैया नज़र न आते अपनों के अपमानों में अब मिलती सबको ख़ुद मुख्तारी बहनें भी कहाँ नज़र मिलाती सुने वही जो सुनना चाहती कमियां इतनी,रही गिनाती उलाहनों से ममता हारी सबके अपने अपने रस्ते और खुशियों की अपनी बारी मेरी तो बस फैमिली है माँ बापू और जिम्मेदारी प्रकाश पाख़ी

जुबाँ चुप रहे क्यूँ,तेरी हादसों पर

"दिखा लाल है रंग रंगों से ज्यादा खतरनाक सड़कें हैं बमों से ज्यादा बीमारी से ज्यादा और दंगों से ज्यादा बहा खून सड़कों पर जंगों से ज्यादा" *************************** ये तकरार है हो रही बोलियों पर भड़कते हैं क्यूँ जात पर मजहबों पर फड़कते है बाजू तेरे गोलियों पर जुबाँ चुप रहे क्यूँ तेरी हादसों पर नशा और सफ़र साथ करना कभी ना कि तब मौत है नाचती रास्तों पर जो रफ़्तार से बढ़ चले ज़िन्दगी में थे उनके सफर थम गए हादसों पर पहन लो ये हेलमेट बेल्ट अब लगा लो बचोगे न तुम कर यकीं टोटकों पर डरा मौत से हूँ नहीं आज तक मैं गवारा नहीं है मरूं रास्तों पर मेरा खून है तो अमानत वतन की अगर मौत आये तो मरूं सरहदों पर मुहाफ़िज़ न बच्चे न पैदल यहाँ पर बड़ी बेरहम है सड़क सिग्नलों पर ओ ईनाम लौटाने वालों कहो कुछ मैं हैरान हूँ तेरी खामोशियों पर प्रकाश पाखी

मुझसे तुम कुछ कहना चाहो

उस पल को मैं ढूंढ रहा हूँ सोचों में तुम बसना चाहो भावों में तुम बहना चाहो मुझसे तुम कुछ कहना चाहो बीते पल जो कड़वे थे कुछ आशाओं के टुकड़े थे कुछ आंसू बनके निकले थे कुछ अब तुम आगे बढ़ना चाहो मुझसे तुम कुछ कहना चाहो गुज़रे कल के अफ़सानों को जो अपने थे उन बेगानों को रोकर के निकाले तूफानों को भूल के तुम अब हंसना चाहो मुझसे तुम कुछ कहना चाहो इन यादों की अंगड़ाईयों में अंतर्मन की गहराइयों में मेरी अपनी तन्हाइयों में मेरे संग तुम रहना चाहो मुझसे तुम कुछ कहना चाहो अपने ग़म को मुझको देकर खुशियों की हरियाली लेकर जीवन के पथरीले पथपर बन हमराही चलना चाहो मुझसे तुम कुछ कहना चाहो... प्रकाश पाखी।